History in Hindi Lesson 02
- चाल्स मैसन ने सर्वप्रथम 1826 ई० में हड़प्पा के टीले का उल्लेख किया|
- जनरल कनिंघम ने 1853 और 1873 ई० में सर्वेक्षण कर कुछ पुरातात्विक सामग्री प्राप्त की|
- जे० एफ० फ्लीट ने 1912 ई० में प्राप्त सामग्रियों को रॉयल एशियाटिक सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पत्रिका में लेख लिखा|
- 1921 ई० में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिर्देशक जान मार्शल की अध्यक्षता में दयाराम साहनी ने सभ्यता के स्थलों का सर्वेक्षण किया|
- 1922 ई० में राखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो की खोज की|
- सिंधु घाटी सभ्यता विस्तार, पूरब में आलमगीरपुर से पश्चिम में मकरान तट-प्रदेश के सुतकागेंडोर तक तथा उत्तर में जम्मू के मांदा से दक्षिण में किम सागर - संगम पर भगतराव तक फैला है|
- सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता सुनियोजित नगरीय वयवस्था थी|
- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल सभ्यता के महत्वपूर्ण नगर थे|
- नगर मुख्यतः एक किले द्वारा घिरा होता था, जो पूर्वी और पश्चिमी टीलो में बटे होते थे, पूर्वी टीला नागरिक आवास था, तथा पश्चिमी टीला प्रशासनिक क्षेत्र|
- सड़के मिटटी की बनी होती थी,सड़के सीधी दिशा में एक दुसरे को समकोण में कटती थी| नगर को कई वर्गाकार और आयताकार खंडो में विभाजित किया गया था|
- जल निकासी हेतु नगर में नालियों की उत्तम व्यवस्था थी, सभी सडको और गलियों के दोनों तरफ पक्की नालिया बनाई गयी थी|
- मकान प्राय एक मंजिले होते थे, कुछ दोमंजिले इमारत भी मिले है|
- हडप्पा का नगर मोहनजोदड़ो से अधिक विस्तृत है|
- हडप्पा से अवशेषों में दुर्ग, रक्षा दुर्ग, निवास गृह, चबूतरे तथा अन्नागार, महत्वपूर्ण है|
- हडप्पा के पश्चिमी टीला में एक दुर्ग का निर्माण किया गया था, जिसे व्हीलर ने माउन्ट ए -बी (Mount A-B) कहा|
- हडप्पा में मोहनजोदड़ो के सामान विशाल भवनों के अवशेष नहीं मिले
- हडप्पा के घरो में अनाज कूटने के लिए लकड़ी के ओखली मिले है, साथ ही यहाँ से जौ के दाने, जले गेहू तथा भूसी प्राप्त हुई है|
- हडप्पा से सोने के मनके का हार, सोने का एक कंगन मिला है|
- मोहनजोदड़ो से विशाल स्नानागार मिला है, इसमे उतरने के लिए उत्तर तथा दक्षिण की और सीढिया बनी है| स्नानागार का उपयोग धार्मिक समारोहों के लिए किया जाता था| स्नानागार के पश्चिम में अन्नागार प्राप्त हुआ है|
- स्नानागार के उत्तर-पूर्व में पुरोहित आवास प्राप्त हुआ है|
- मोहनजोदड़ो के दुर्ग के दक्षिण में सभागार मिला है|
- मोहनजोदड़ो से काजल, पाउडर तथा सृंगार प्रसाधन की अन्य सामग्री भी प्राप्त हुई है|
- मोहनजोदड़ो से मिट्टी के बने हल का प्रारूप मिला है|
- मोहनजोदड़ो से पुरोहित की मूर्ति मिली है, जो तिपतिया अलंकरण से युक्त है|
- मोहनजोदड़ो से एक योगी मुद्रा प्राप्त हुई है| इस मुद्रा में योगी पद्मासन में बैठा है| योगी की दायी ओर चिता और हाथी तथा बाई ओर गैंडा और भैसा है| सिर पर एक त्रिशूल जैसा आभूषण है| इसके तीन मुख है, इसे पशुपति शिव माना गया है|
- एन० मजूमदार ने 1934 ई० में चन्हुदड़ो की खोज की तथा 1943 ई० में मैके ने यहाँ उत्खनन करवाया|
- चन्हुदड़ो एक औधोगिक नगर था, यहाँ मनिकारी, मुहर बनाने, मनका बनाना, भार माप के बटखरे बनाने का कार्य होता था|
- चन्हुदड़ो में किलेबंदी का साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है| यहाँ से प्राप्त कुछ ईटे व्रक्राकार है|
- चन्हुदड़ो से लिपस्टिक के साक्ष्य मिले है, शीशे और कंघी भी मिले है|
- सुतकागेंडोर की खोज 1927 ई० में स्टाइन ने की थी| 1962 ई० में जार्ज ने सर्वेक्षण कर यहाँ से दुर्ग तथा बंदरगाह की खोज की|
- सुतकागेंडोर पाकिस्तान के मकरान में समुन्द्रतट के किनारे अवस्थित है|
- सुतकागेंडोर एक बंदरगाह था, इस बंदरगाह से मेसोपोटामिया के लिए व्यापार किया जाता था|
- यहाँ से प्राप्त अवशेषों में मिर्द्भांड, ताम्रनिर्मित बणाग्र, ताम्रनिर्मित ब्लेड, मिट्टी की चूड़िया तथा तिकोने ठिकने महत्वपूर्ण है|
- सुतकागेंडोर के पूर्व में सोत्काकोह स्थित है, जिसकी खोज 1962 में डेल्स ने की थी|
- बालाकोट की खोज 1979 में डेल्स ने की थी, यह बलूचिस्तान के दक्षिण तटवर्ती पट्टी पर स्थित था|
- बालाकोट एक बंदरगाह था, यहाँ से प्राक तथा विकशित सैन्धव सभ्यता के अवशेष मिलते है|
- बालाकोट में हजारो की संख्या में सीप की बनी चूड़िया मिले है, यह स्थल सीप-उद्योग के रूप में विकसित था|
- सिंधु सभ्यता की उत्तरी सीमा मांडा की खोज 1982 ई० में जे० पी० जोशी तथा मधुबाला ने की थी|
- मांडा से तीन सांस्कृतिक स्तर प्राक सैन्धव, विकसित सैन्धव, एवं उत्तरकालीन सैन्धव मिले है|
- बनावली का उत्खनन 19 73 में आर० एस० विष्ट द्वारा करवाया गया, यहाँ से संस्कृति के तिन स्तर मिले है|
- बनावली का दुर्ग तथा निचला नगर अलग अलग न होकर एक ही प्राचीर से घिरा है|
- बनावली के एक मकान से धावन पात्र (वश-बेसिन) लगा हुआ मिला है, बनावली समृद्ध लोगो का नगर था|
- बनावली के कई मकानों से अग्निवेदिया मिली है, यहाँ से जाऊ के दाने काफी मात्रा में पाए गए है|
- बनावली से मिट्टी से बना हल मिला है|
- स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वप्रथम उत्खनन रोपड़ का किया गया, रोपड़ का आधुनिक नाम रूपनगर है|
- रोपड़ की खोज बी० बी० लाल ने 1950 में किया, यहाँ संस्कृति का छ: चरण मिलते है|
- रोपड़ में एक ऐसा कब्रिस्तान मिला है जिसमे मनुष्य के साथ पालतू कुत्ता भी दफनाया गया है|
- भगवानपुरा से सैन्धव सभ्यता के पत्नोंमुख काल के अवशेष मिले है|
- राखिगढ़ी सैन्धव सभ्यता का सबसे बड़ा और विस्तृत स्थल है|
- कुणाल से चाँदी के दो मुकुट मिले है|
- कालीबंगा का उत्खनन 1961 ई० में बी० बी० लाल तथा बी० के० थापड़ के निर्देशन में किया गया, यह घग्घर नदी के बाये किनारे अवस्थित है|
- कालीबंगा से जूते हुए खेत के साक्ष्य मिले है, इस खेत में जुताई आड़ी-तिरछी जुताई की गयी थी, संभवत ऐसा माना जाता है की एक ही समय में दो तरह की खेती की जाती थी|
- कालीबंगा से भूकंप आने के प्राचीनतम साक्ष्य मिले है|
- कालीबंगन से यज्ञवेदी के अवशेष मिले है|
- लोथल गुजरात के अहमदाबाद में सरगवल नामक ग्राम के समीप स्थित है|
- लोथल में पक्की ईटो से निर्मित गोदीबाड़ा मिली है, यह विश्व का प्राचीनतम गोदीबाड़ा है| जो एक नहर द्वारा भोगवा नदी से जोड़ा गया था|
- लोथल सभ्यता का प्रसिद्ध बंदरगाह था|
- लोथल से सतरंज के दो बोर्ड मिले है|
- सुरकोटडा गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है, यह नगर दो दुर्गीकृत भागो गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था|
- सुरकोटडा से कलश शावाधन का साक्ष्य मिला है, यहाँ से घोड़े की हड्डी प्राप्त हुई है|
- धौलावीर, गुजरात के कच्छ में अवस्थित है, यह नगर तीन भागों में दुर्ग, मध्यम और निचला नगर में बटे थे| सम्पूर्ण क्षेत्र किलेबंद था साथ ही ये तीनों को भी अलग से किलेबंद किये गए थे|
- दैमाबाद सिंधु सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल है, यह महाराष्ट्र के अहमदनगर में प्रवरा नदी के बाए किनारे पर स्थित है|
- आलमगीरपुर, उत्तरप्रदेश के मेरठ में अवस्थित है, यह सिंधु सभ्यता का पूर्वी सीमा है| यहाँ से कोई भी मुहर प्राप्त नही हुआ है|
- यहाँ एक गर्त से रोटी बेलने की चौकी तथा कटोरा प्राप्त हुआ है|
- सिंधु सभ्यता मातृसतात्त्मक व्यवस्था पर आधारित थी, इसकी पुष्टि यहाँ से प्राप्त नारी मूर्तियों से होती है|
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त साक्ष्य से समाज के चार वर्गों में विभाजित होने का प्रमाण मिलता है, जो विद्धवान, योद्धा, व्यापारी और शिल्पकार के रूप में बटे थे|
- खुदाई से प्राप्त विभिन्न आकर-प्रकार के मकानों के आधार पर माना जाता है की समाज में जातिप्रथा प्रचलित थी|
- मनोरजन के लिए यहाँ के कोग पासा खेलते थे| कई स्थलों से शतरंज की गोटियो से मिलती-जुलती मिटटी के बने पासे मिलते है|
- यहाँ के लोग दशमलव पद्धति से परिचित थे|
- सिंधु सभ्यता के लोगो ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की|
- सिंधु सभ्यता में गाय, ऊट, तथा घोड़े का अंकन मुहरो पर नहीं मिलता|
- मोहनजोदड़ो, हडप्पा,कालीबंगन, सुरकोतदा, के स्थलों से कूबड़दार ऊट का जीवाश्म मिला है|
- लोथल, सुरकोतदा, कालीबंगन से घोड़े की मृंमुर्तिया तथा जीवाश्म मिले है|
- सिधु सभ्यता के लोगो को सोना, चाँदी, ताम्बा, कांसा तथा सीसा का ज्ञान था, परन्तु ऐ लोग लोहे से परिचित नहीं थे|
- यहाँ से चाँदी के बर्तन तथा आभूषण प्राप्त हुए है, परन्तु सोने से निर्मित कोइ भी बर्तन प्राप्त नहीं हुआ है|
- चन्हुदड़ो तथा लोथल में मनका बनाया जाता था|
- बालाकोट तथा लोथल सीप उद्योग के कार्य का किया जाता था|
- सिंधु सभ्यता में मैसूर से सोना, राजस्थान, बलूचिस्तान तथा मद्रास से तांबा, अजमेर से सीसा, कश्मीर तथा कठियावाड़ से बहुमूल्य पत्थर आयात किया जाता था|
- अफगानिस्तान, आर्मेनिया तथा ईरान से चाँदी तथा लजव्रद मणि का आयात किया जाता था|
- मोहनजोदड़ो तथा लोथल से हाथी दांत के बने हुए तराजू के पलड़े मिले है|
- अफगानिस्तान, आर्मेनिया तथा ईरान से चाँदी तथा लाजवर्द मणि का आयात किया जाता था|
- लोथल बंदरगाह से तांबा तथा हाथी दांत की वस्तुये मेसोपोटामिया भेजा जाता था|
- सुमेरियन लेख से सैन्धव सभ्यता के वाणिज्य की जानकारी मिलती है, इस लेख में मेलुहा, दिल्मुन तथा मगन का उल्लेख मिलता है| इसमे मेलुहा की पहचान सिंध प्रदेश से की गयी है|
- दिल्मुन की पहचान बहरीन द्वीप तथा मगन की पहचान बलूचिस्तान के मकरान तट से की गयी है|
- सिंधु सभ्यता का मिस्र के साथ व्यापार मुख्यतः लोथल से होता था|
- बलूचिस्तान क्षेत्र से प्राप्त कुछ नारी मृंणमुर्तिया रौद्र रूप में मिली है|
- प्राप्त साक्ष्य के आधार पर माना जाता है की विक्षो में पीपल पवित्र वृक्ष था, नागपूजा की जाती थी, स्वास्तिक एक पवित्र चिन्ह था, यहाँ से अनेक ताबिजे भी प्राप्त हुई है
- मार्शल, मैके, एस० आर० राव के अनुसार सिंधु सभ्यता का विनाश नदी में बाढ़ के कारण हुआ| मार्शल को मोहनजोदड़ो की खुदाई में विभिन्य स्तरों से बालू की परते मिली है जो बाढ़ के कारण ही जमा हुई थी| एस० आर० राव को लोथल, भागतराव में बाढ़ के संकेत मिले है|
- आरेल स्टीन, ऐ० ऐन० घोष के अनुसार सभ्यता का विनाश जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ|
- एम० आर० साहनी के अनुसार सभ्यता का विनाश जलप्लावन के कारण हुआ|
- के० यू० आर० कनेडी के अनुसार सभ्यता का विनाश प्राकृतिक आपदाओ के कारण हुआ|
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